What a great moment was that when Sahir Ji written this great Song.....
The Film Starring Dharmendra & Mala Sinha was a great legend "AANKHEN" in 1968....
गाना / Title: ग़ैरों पे करम अपनों पे सितम, ऐ जान\-ए\-वफ़ा ये ज़ुल्म न कर
चित्रपट / Film: Aankhen
संगीतकार / Music Director: Ravi
गीतकार / Lyricist: साहिर-(Sahir)
गायक / Singer(s): लता-(Lata)
ग़ैरों पे करम अपनों पे सितम, ऐ जान\-ए\-वफ़ा ये ज़ुल्म न कर
रहने दे अभी थोड़ा सा धरम, ऐ जान\-ए\-वफ़ा ये ज़ुल्म न कर
ये ज़ुल्म न कर
ग़ैरों पे करम ...
ग़ैरों के थिरकते शानों पर, ये हाथ गँवारा कैसे करें
हर बात गंवारा है लेकिन, ये बात गंवारा कैसे करें
ये बात गंवारा कैसे करें
मर जाएंगे हम, मिट जाएंगे हम
ऐ जान\-ए\-वफ़ा ये ज़ुल्म न कर, ये ज़ुल्म न कर
ग़ैरों पे करम ...
हम भी थे तेरे मंज़ूर\-ए\-नज़र, दिल चाहा तो अब इक़रार न कर
सौ तीर चला सीने पे मगर, बेगानों से मिलकर वार न कर
बेगानों से मिलकर वार न कर
बेमौत कहीं मर जाएं न हम
ऐ जान\-ए\-वफ़ा ये ज़ुल्म न कर, ये ज़ुल्म न कर
ग़ैरों पे करम ...
हम चाहनेवाले हैं तेरे, यूँ हमको जलाना ठीक नहीं
मह्फ़िल में तमाशा बन जाएं, इस दर्जा सताना ठीक नहीं
इस दर्जा सताना ठीक नहीं
ऐ जान\-ए\-वफ़ा ये ज़ुल्म न कर, ये ज़ुल्म न कर
ग़ैरों पे करम ...
7 comments:
बहुत सुंदर...आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है.....आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे .....हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
स्वागत है आपका
bahut accha..isi tarah aur geetoo ke lycrics share karte rahe....
भाई स्वागत... अब थोडी रंगीली बातां हो जाये
bahut badhiya hai.
Swagat, kuch baatein Marwar se bhi hon.
महज़ अलफाज़ से खिलवाड़ नहीं है कविता
कोई पेशा ,कोई व्यवसाय नही है कविता ।
कविता शौक से भी लिखने का काम नहीं
इतनी सस्ती भी नहीं , इतनी बेदाम नहीं ।
कविता इंसान के ह्रदय का उच्छ्वास है,
मन की भीनी उमंग , मानवीय अहसास है ।
महज़ अल्फाज़ से खिलवाड़ नही हैं कविता
कोई पेशा , कोई व्यवसाय नहीं है कविता ॥
कभी भी कविता विषय की मोहताज़ नहीं
नयन नीर है कविता, राग -साज़ भी नहीं ।
कभी कविता किसी अल्हड yauvan का नाज़ है
कभी दुःख से भरी ह्रदय की आवाज है
कभी धड़कन तो कभी लहू की रवानी है
कभी रोटी की , कभी भूख की कहानी है ।
महज़ अल्फाज़ से खिलवाड़ नहीं है कविता,
कोई पेशा , कोई व्यवसाय नहीं है कविता ॥
मुफलिस ज़िस्म का उघडा बदन है कभी
बेकफन लाश पर चदता हुआ कफ़न है कभी ।
बेबस इंसान का भीगा हुआ नयन है कभी,
सर्दीली रात में ठिठुरता हुआ तन है कभी ।
कविता बहती हुई आंखों में चिपका पीप है ,
कविता दूर नहीं कहीं, इंसान के समीप हैं ।
महज़ अल्फाज़ से खिलवाड़ नहीं है कविता,
कोई पेशा, कोई व्यवसाय नहीं है कविता ॥
KAVI DEEPAK SHARMA
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Posted by Kavyadhara Team
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